१७- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १७
चूमने के लिए फक्त उसकी तस्वीर ही काफ़ी है
शख्स नहीं रूठने के लिए बस तकदीर ही काफ़ी है
लोगो ने खामखा मंज़िल को इतनी तवज्जो दे रखी है
तजुर्बा ये कहता है कि तजुर्बे के लिए सफ़र ही काफ़ी है
परिंदो के लिए खामखा में तुमने पिंजरे बना लिए
उनकी घुटन के लिए शहर के लोग और शहर ही काफ़ी है
समंदर कभी अपनी गहराई का ढिंढोरा नहीं पिटता
क्यूंकि आदमी को डराने के लिए बस लहर ही काफ़ी है
वो दोस्ती का हाथ नवाज़िशे सब बेमतलब रहा "सौरभ"
जानी दुश्मनी के लिए आज भी बस कश्मीर ही काफ़ी है।
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 03:04 PM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ
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Saurabh Patel
29-Sep-2022 04:02 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Swati chourasia
17-Sep-2022 10:38 PM
बहुत खूब 👌
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Saurabh Patel
17-Sep-2022 11:10 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Supriya Pathak
17-Sep-2022 09:59 PM
Achha likha hai aapne 🌺🙏
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Saurabh Patel
17-Sep-2022 11:10 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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